इरफ़ान सिद्दीक़ी: कवि और शायर
इरफ़ान सिद्दीक़ी की जीवन परिचय:
- उपनाम :‘इरफ़ान’
- मूल नाम :इरफ़ान सिद्दीक़ी
- जन्म :08 Jan 1939 | बदायूँ, उत्तर प्रदेश
- निधन :15 Apr 2004 | लखनऊ, उत्तर प्रदेश
- संबंधी :सय्यद मोहम्मद अशरफ़ (Nephew), नियाज़ बदयूनी (भाई)
इरफ़ान सिद्दीक़ी की उपलब्धियां:
- हिंदी और उर्दू भाषा में कविता और शायरी के लिए जाने जाते हैं
- “इश्क़नामा” और “कैनवास” जैसी प्रसिद्ध किताबें लिखी हैं
- उनकी रचनाएँ प्रेम, दर्शन और जीवन के गहरे विषयों पर केंद्रित हैं
- उन्हें उनकी कविताओं की भावनात्मक गहराई और भाषा के सटीक प्रयोग के लिए सराहा जाता है
इरफ़ान सिद्दीक़ी की प्रसिद्ध रचनाएं:
- कविता संग्रह:
- “इश्क़नामा”
- “कैनवास”
- “क़िस्सा मुख़्तसर करता हूँ”
- अन्य रचनाएं:
- ग़ज़लें
- शेर
- लेख
इरफ़ान सिद्दीक़ी की टॉप 20 शायरी निम्नलिखित हैं:-
उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए
कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
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बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है
उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है
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रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है
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होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है
रंज कम सहता है एलान बहुत करता है
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तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ाद
शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो
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बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं
कि छू रहा हूँ तुझे और पिघल रहा हूँ मैं
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जो कुछ हुआ वो कैसे हुआ जानता हूँ मैं
जो कुछ नहीं हुआ वो बता क्यूँ नहीं हुआ
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सर अगर सर है तो नेज़ों से शिकायत कैसी
दिल अगर दिल है तो दरिया से बड़ा होना है
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अजब हरीफ़ था मेरे ही साथ डूब गया
मिरे सफ़ीने को ग़र्क़ाब देखने के लिए
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हमें तो ख़ैर बिखरना ही था कभी न कभी
हवा-ए-ताज़ा का झोंका बहाना हो गया है
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सरहदें अच्छी कि सरहद पे न रुकना अच्छा
सोचिए आदमी अच्छा कि परिंदा अच्छा
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रेत पर थक के गिरा हूँ तो हवा पूछती है
आप इस दश्त में क्यूँ आए थे वहशत के बग़ैर
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अपने किस काम में लाएगा बताता भी नहीं
हम को औरों पे गँवाना भी नहीं चाहता है
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मैं चाहता हूँ यहीं सारे फ़ैसले हो जाएँ
कि इस के ब’अद ये दुनिया कहाँ से लाऊँगा मैं
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रूह को रूह से मिलने नहीं देता है बदन
ख़ैर ये बीच की दीवार गिरा चाहती है
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शोला-ए-इश्क़ बुझाना भी नहीं चाहता है
वो मगर ख़ुद को जलाना भी नहीं चाहता है
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हम ने देखा ही था दुनिया को अभी उस के बग़ैर
लीजिए बीच में फिर दीदा-ए-तर आ गए हैं
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कहा था तुम ने कि लाता है कौन इश्क़ की ताब
सो हम जवाब तुम्हारे सवाल ही के तो हैं
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हमारे दिल को इक आज़ार है ऐसा नहीं लगता
कि हम दफ़्तर भी जाते हैं ग़ज़ल-ख़्वानी भी करते हैं
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मगर गिरफ़्त में आता नहीं बदन उस का
ख़याल ढूँढता रहता है इस्तिआरा कोई