अमजद इस्लाम अमजद:पाकिस्तानी उर्दू कवि

अमजद इस्लाम अमजद:पाकिस्तानी उर्दू कवि, पटकथा लेखक, नाटककार और गीतकार

अमजद इस्लाम अमजद:जीवन परिचय

  • जन्म: 4 अगस्त 1944, लाहौर, पाकिस्तान
  • मृत्यु: 10 फरवरी 2023, लाहौर, पाकिस्तान
  • पत्नी: फ़िरदौस अमजद
  • बच्चे: अली ज़ीशान अमजद
  • राष्ट्रीयता: पाकिस्तानी
अमजद इस्लाम अमजद की टॉप 20 शायरी
अमजद इस्लाम अमजद:पाकिस्तानी उर्दू कवि

अमजद इस्लाम अमजद:उपलब्धियां

  • 70 से अधिक पुस्तकों के लेखक
  • साहित्यिक कार्य और टीवी के लिए पटकथा लेखन के लिए कई पुरस्कार प्राप्त
  • पुरस्कारों में शामिल हैं:
    • प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस
    • सितारा-ए-इम्तियाज

अमजद इस्लाम अमजद:प्रसिद्ध रचनाएं

  • ग़ज़लें:
    • “कहाँ आ के रुकने थे रास्ते”
    • “आईनों में अक्स न हों तो”
    • “अपनी आँखों में ख़ुद को तलाश करना है”
  • नाटक:
    • “फनकार”
    • “बेगुनाह”
    • “तेरा मेरा साया”
  • गीत:
    • “मैं हार मान चुका हूँ”
    • “ये वो जंग है”
    • “चाँद सा चेहरा”

अमजद इस्लाम अमजद को उनकी प्रेम, दर्शन और जीवन के बारे में लिखी गई ग़ज़लों के लिए जाना जाता है। उनकी रचनाओं का उर्दू साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है।

अमजद इस्लाम अमजद की टॉप शायरी

जिस तरफ़ तू है उधर होंगी सभी की नज़रें

ईद के चाँद का दीदार बहाना ही सही

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बड़े सुकून से डूबे थे डूबने वाले

जो साहिलों पे खड़े थे बहुत पुकारे भी

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चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन

क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन

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लिखा था एक तख़्ती पर कोई भी फूल मत तोड़े मगर आँधी तो अन-पढ़ थी

सो जब वो बाग़ से गुज़री कोई उखड़ा कोई टूटा ख़िज़ाँ के आख़िरी दिन थे

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जैसे बारिश से धुले सेहन-ए-गुलिस्ताँ ‘अमजद’

आँख जब ख़ुश्क हुई और भी चेहरा चमका

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क्या हो जाता है इन हँसते जीते जागते लोगों को

बैठे बैठे क्यूँ ये ख़ुद से बातें करने लगते हैं

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किस क़दर यादें उभर आई हैं तेरे नाम से

एक पत्थर फेंकने से पड़ गए कितने भँवर

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हर समुंदर का एक साहिल है

हिज्र की रात का किनारा नहीं

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बे-समर पेड़ों को चूमेंगे सबा के सब्ज़ लब

देख लेना ये ख़िज़ाँ बे-दस्त-ओ-पा रह जाएगी

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गुज़रें जो मेरे घर से तो रुक जाएँ सितारे

इस तरह मिरी रात को चमकाओ किसी दिन

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एक नज़र देखा था उस ने आगे याद नहीं

खुल जाती है दरिया की औक़ात समुंदर में

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हादिसा भी होने में वक़्त कुछ तो लेता है

बख़्त के बिगड़ने में देर कुछ तो लगती है

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कमाल-ए-हुस्न है हुस्न-ए-कमाल से बाहर

अज़ल का रंग है जैसे मिसाल से बाहर

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कुछ ऐसी बे-यक़ीनी थी फ़ज़ा में

जो अपने थे वो बेगाने लगे हैं

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यूँ तो हर रात चमकते हैं सितारे लेकिन

वस्ल की रात बहुत सुब्ह का तारा चमका

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फ़ज़ा में तैरते रहते हैं नक़्श से क्या क्या

मुझे तलाश न करती हों ये बलाएँ कहीं

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आँख भी अपनी सराब-आलूद है

और इस दरिया में पानी भी नहीं

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ये जो साए से भटकते हैं हमारे इर्द-गिर्द

छू के उन को देखिए तो वाहिमा कोई नहीं

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न उस का अंत है कोई न इस्तिआ’रा है

ये दास्तान है हिज्र-ओ-विसाल से बाहर

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दर्द का रस्ता है या है साअ’त-ए-रोज़-ए-हिसाब

सैकड़ों लोगों को रोका एक भी ठहरा नहीं

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