गोनोकोकस: सूजाक रोग के कारण

गोनोकोकस: सूजाक रोग के कारण औरउपचार

परिचय

सूजाक रोग, जिसे अन्यत्र ‘सोजाक’ भी कहा जाता है, विशेषकर एलोपैथी में ‘गनोरिया’ के नाम से जाना जाता है, एक संक्रामक रोग है। आयुर्वेद में इसका वर्णन नहीं है, परंतु आधुनिक चिकित्सक इसे ‘पूयमेह’ कहते हैं।

सूजाक रोग के कारण औरउपचार
सूजाक रोग के कारण औरउपचार

कारण

एलोपैथी में इस रोग का कारण एक प्रकार के छोटे कीटाणु, जिन्हें ‘गोनोकोकस’ भी कहा जाता है, होते हैं। यह रोग संबंधित व्यक्ति के साथ संबंध बनाने के द्वारा होता है, जिससे कीटाणु मूत्रमार्ग में प्रवेश करते हैं और रोग उत्पन्न करते हैं।

‘सूजाक’ और ‘उपर्दश’- ये दोनों रोग सगे भाई-बहन जैसे ही हैं, अन्तर यही है कि उपदंश रोग में बाहर घाव होते हैं तथा सूजाक में मूत्रेन्द्रिय के भीतर घाव होते हैं।

स्तंभन के लिए नशीली वस्तुओं का सेवन, रसजस्वला स्त्री के साथ सहवास, वैश्या-गमन, स्वप्नदोष, मैथुन में अधिक समय तक आनन्द प्राप्त करने के उद्देश्य से स्खलित होते हुए वीर्य को रोकना तथा सूजाक रोगी द्वारा मूत्र त्याग किये गये स्थान पर मूत्र त्याग करना-ये सब भी सूजाक रोग की उत्पत्ति के कारण माने गये हैं।

लक्षण

रोग की प्रारंभिक अवस्था में मूत्रेन्द्रिय में दाह, फूलन, मुँह का लाल हो जाना, और पीड़ा तथा खुजली के लक्षण हो सकते हैं। रोग की द्वितीयावस्था में जलन और पीड़ा बढ़ सकती है, और मूत्रनली में भी घाव हो सकते हैं। रात के समय में इस रोग से पीड़ित पुरुषों की लिंगेन्द्रिय में तनाव बढ़ सकता है और मैथुन की इच्छा बढ़ सकती है। यह रोग स्त्री को भी संसर्गजन्य रूप से प्रभावित कर सकता है।

इस रोग की तृतीय अर्थात जीर्णावस्था 15 दिन बाद ही आ जाती है। उस स्थिति में जलन तथा पीड़ा तो कम हो जाती है, परन्तु सफेद रंग की पीब कई महीनों तक निकलती रहती है। कुछ दिनों तक भीतरी घावों के मुँह बन्द हो जाते हैं, जिसके कारण रोगी समझता है कि बीमारी दूर हो गई परन्तु जैसे ही वह किसी गर्म अथवा लाल मिर्च आदि तीक्ष्ण पदार्थ का सेवन करता है, तो पीब पुनः निकलने लगता है तथा पेशाब बूंद-बूँद करके निकलता है, जिससे विशेष कष्ट का अनुभव होता है। कभी-कभी मूत्र निकलना बन्द ही हो जाता है। मूत्रनली सिकुड़ जाती है तथा नपुंसकता आक्रमण कर देती है। ऐसे पुराने सूजाक का इलाज होना अत्यन्त कठिन होता है।पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को सूजाक में दाह, जलन आदि की पीड़ा कम होती है।

उपचार

इस रोग की उपचार आरम्भ करने से पूर्व रोगी का पेट साफ करने के लिए सामान्य जुलाब देना आवश्यक है। एरण्ड का तैल 3 या 4 तोले की मात्रा में लेकर उसे दूध में मिलाकर पिलायें। इससे दस्त साफ हो जाएगा। उपचार के दौरान यदि कभी रोगी को कब्ज की शिकायत हो तो उसे गुलाब का गुलकन्द दो तोला तथा बीज निकाले हुए मुनक्का के 15 दाने-इन दोनों को उबालकर,  मल कर छान लें। इसे रात को सोते समय रोगी को पिलायें। इससे प्रातःकाल दस्त साफ आयेगा।

सूजाक के रोगी को दूध-पानी की लस्सी देना तो हितकर रहता है, परन्तु पेशाब लाने वाली औषधियाँ नहीं देनी चाहिए। पेशाब साफ लाने तथा उसकी गरमी एवं जलन शान्त करने के लिए निम्नलिखित उपचार लाभप्रद रहते हैं-

  • ककड़ी के बीज 3 माशा तथा कलमी शोरा डेढ़ माशा- इन दोनों को कूट-पीस लें। यह एक मात्रा है। इसे खड़े-खड़े ही फांक लें तथा उसी स्थिति में ऊपर से एक पाव गाय के दूध में एक पाव पानी मिलाकर पी जाएँ। चूर्ण तथा दूध-पानी को बैठकर सेवन न करें। इन्हें यदि टहलते हुए ही सेवन किया जाय तो अच्छा रहता है।
  • ईसबगोल, विहीदाना, मुलहठी अथवा गोखुरू-इनमें से किसी भी एक को रात के समय पानी में भिगो दें तथा प्रात:काल मलकर छान लें। यह छना हुआ पानी रोगी को पिलायें।

उक्त चारों वस्तुओं के चूर्ण को चावल के धोवन के साथ भी सेवन किया जा सकता है परन्तु चारों में से किसी एक का ही सेवन करना चाहिए।

सूजाक में हितकारी औषधी निम्नलिखित हैं:-

  • सफेद चन्दन को पानी में घिसकर उसकी पिचकारी लिंग के छिद्र में लगाने से पुराना सूजाक ठीक हो जाता है।
  • बरगद के दूध को बताशे में भरकर नित्य प्रातःकाल खाने से सूजाक 3 दिन में ही हो जाता है। दूर
  • मूली के पत्तों का स्वरस आधा सेर में 3 माशा कलमी शोरा मिलाकर रोगी को पिला देने से उसका पेशाब खुल जाता है।
  • बबूल की नर्म पत्तियाँ 1 तोला तथा गोखरू 1 तोला-इन दोनों को 5 तोला पानी में पीसकर उसमें 1 तोला मिश्री मिलाकर पियें। इससे सूजाक दूर हो जाता है।
  • हरे आँवलों का रस निकालकर उसे पिसी हुई हल्दी तथा शहद मिलाकर पीने से सूजाक नष्ट होता है।
  • ग्वारपाठे के गूदे में मिश्री मिलाकर 3-4 दिन तक सेवन करने से नया सूजाक 15 दिन के भीतर ही ठीक हो जाता है।
  • भुनी हुई फिटकरी 3 रत्ती को प्रातः एवं सायंकाल शहद के साथ सेवन करने से पुराना सूजाक ठीक हो जाता है।
  • असली चन्दन का तैल एवं विरोजे का तेल 10-10 या 20-20 बूँद एक या दो बड़े बताशे में टपका कर उन्हें खालें तथा ऊपर से एक पाव गाय का धारोष्ण दूध पी लें। इसे प्रात:सायं दोनों समय सेवन करते रहने से हर प्रकार का सूजाक 10-12 दिन में ठीक हो जाता है। रोग की तीव्रता के अनुसार ही तैलों की बूंदें निश्चित कर लेनी चाहिए।
  • ककड़ी के बीजों की मींगी, दारूहल्दी तथा मुलहठी-इन तीनों को समभाग ले, चूर्ण बना । इस चूर्ण को 6 माशे की मात्रा में चावल के धोवन के साथ पिलाने से सूजाक की जलन तुरन्त ही कम हो जाती है।
  • नीम के पत्तों को पानी में औटाकर, उस पानी का बफारा देने तथा सुहाता गर्म रह जाने पर उसे लिंग के ऊपर डालने से, सूजाक के कारण आई हुई लिंग की सूजन कम हो जाती है।
  • केले के खंभे को कूट-पीसकर कपड़े में रखकर निचोड़ लें तथा उससे निकलने वाले रस को 4 तोले की मात्रा में, दिन में तीन बार पीने से पेशाब खूब साफ होता है तथा सूजाक ठीक हो जाता है। केले के खंभे का रस हर बार ताज़ा निकाल कर ही पीना चाहिए बासी अथवा रखा हुआ रस हानिकारक है।
  • गिलोय का रस ढाई तोला में शहद 6 माशा मिलाकर पीने से पेशाब की जलन, दाहयुक्त प्रमेह तथा सूजाक दूर हो जाते हैं।
  • कुकुरमुत्ते के एक तोला रस में 6 माशा मिश्री मिलाकर पीने से सूजाक नष्ट हो जाता है।
  • हल्दी तथा आँवले को समभाग ले, पीस छानकर चूर्ण बना लें, फिर उसमें चूर्ण के वज़न के बराबर मिश्री पीसकर मिला दें। इस चूर्ण को 1 तोला की मात्रा में खाकर ऊपर से ठंडा पानी पियें। इस उपचार से नया सूजाक 8 दिन में ही दूर हो जाता है।

उपचार के दौरान परहेज:-

  • अधिक पानी पीना, दूध-पानी की लस्सी को खड़े-खड़े पीना
  • सूजाक रोग में तैल लगाकर स्नान करना
  • अलसी के दानों की चाय और जौ का काढ़ा लाभकारी हो सकते हैं

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