चाणक्य नीति : मैनेजमेंट सूत्र

चाणक्य नीति : आचार्य चाणक्य के मैनेजमेंट सूत्र

आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में ऐसे कई अचूक सूत्र और परामर्श दिए हैं, जो वर्तमान युग के मैनेजरों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। चाणक्य ने मैनेजरों को बताया है कि सही समय पर सटीक निर्णय किस तरह लेना चाहिए और ग्राहकों को किस तरह संतुष्ट करना चाहिए।   उन्होंने लिखा है-“गरमी के मौसम में तुम हाथियों को आसानी से पकड़ सकते हो, क्योंकि उस समय पानी की किल्लत होती है और हाथी झुंड बनाकर पानी की तलाश में घने जंगल से निकलकर बाहर आते हैं।”

चाणक्य नीति
चाणक्य नीति

      चाणक्य नीति में चाणक्य की इस नसीहत में मार्केटिंग की समूची रणनीति निहित है। मैनेजर को बाजार की परिस्थितियों का आकलन करना चाहिए और व्यवसाय में कामयाबी हासिल करने के लिए ग्राहकों की जरूरतों की पूर्ति करनी चाहिए। हाल के दिनों तक कॉरपोरेट घरानों की मार्केटिंग रणनीतियाँ शहरी ग्राहकों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही थीं। बैंक, बीमा कंपनियाँ, दूरसंचार सेवा प्रदाता एवं सौंदर्य उत्पादन कंपनियाँ अब गाँवों की तरफ अपने दायरे का विस्तार करने लगी हैं और नए उपभोक्ताओं तथा नए बाजारों को लुभाने की रणनीति बनाने लगी हैं।

      चाणक्य नीति में चाणक्य ने ग्रामीण बाजार की संभावनाओं को अच्छी तरह समझा था और अपना मत व्यक्त किया था कि राजनीतिक शक्ति या संपदा गाँवों को आधार बनाकर ही हासिल की जा सकती है। चाणक्य ने मानव संसाधन प्रबंधन के बारे में भी कई अनमोल सूत्र दिए। उनकी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में कर्मचारियों की नियुक्ति, तबादला, पदोन्नति पारिश्रमिक एवं अन्य पहलुओं के बारे में विस्तारपूर्वक रोशनी डाली गई है।

        चाणक्य का कहना है कि किसी भी विभाग की जिम्मेदारी विशेषज्ञ व्यक्ति को सौंपी जानी चाहिए। आज के युग की कंपनियों में इस तरह के विशेषज्ञ मैनेजरों के पदों का सृजन किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर, मैनेजर क्षतिपूर्ति एवं लाभ, मैनेजर प्रशिक्षण एवं विकास, मैनेजर कर्मचारी संबंध आदि। ये ऐसे पद हैं, जिनकी कल्पना चाणक्य ने हजारों वर्ष पहले ही की थी। चाणक्य ने कहा था कि किसी के हाथ में पूर्ण सत्ता नहीं सौंपी जानी चाहिए, क्योंकि वह जानते थे कि पूरी सत्ता व्यक्ति को भ्रष्ट बना देती है।

      चाणक्य नीति में चाणक्य ने प्रगति को चार चरणों में परिभाषित किया-पहला, व्यक्ति को लक्ष्य तक पहुँचना चाहिए; दूसरा, प्रगति निरंतर होती रहनी चाहिए; तीसरा, आपको प्रगति का विस्तार करना चाहिए, चौथा, आपको सभी अंशधारकों तक प्रगति के फल को पहुँचाने की व्यवस्था करनी चाहिए।

         किसी व्यवसायी की जिम्मेदारी महज व्यावसायिक प्रतिष्ठान की स्थापना करने के साथ ही समाप्त नहीं हो जाती है। प्रतिष्ठान को खड़ा करने के लिए काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हर कंपनी को बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है और अग्रणी बनाने के लिए सतत प्रयत्न करना पड़ता है। कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व की पूर्ति करते हुए कंपनियों को अपनी सफलता के फल को अपने कर्मचारियों और समाज के बीच बाँटना चाहिए। चाणक्य ने इसे एक अहम शर्त बताया है।

     कोई भी मैनेजमेंट की किताब आपको व्यवसाय-संचालन की विधियाँ सिखा सकती है। उनकी बताई गई विधियाँ ऐसी मीठी गोलियों की तरह होती हैं, जो व्यावहारिकता के धरातल पर असरदार सिद्ध नहीं हो पातीं। उनके परामर्शो में किसी तरह की गहराई नहीं होती। लेकिन कौटिल्य का चाणक्य के मैनेजमेंट सूत्र ‘अर्थशास्त्र’ ऐसा ग्रंथ है, जो आपको कारगर व्यवस्था का निर्माण करने का तरीका सिखलाता है, जिस व्यवस्था के आधार पर आप सतत प्रगति कर सकते हैं। चाणक्य ने अपनी पुस्तक में सांगठनिक ढाँचे को निचले स्तर से ही मजबूत बनाने की विधियों पर रोशनी डाली है।

      अगर आप दस हाथियों को पकड़ना चाहते हैं तो इसके लिए आपको केवल एक हाथी की जरूरत होगी। हाथी समूह में रहना पसंद करते हैं। ये अकेले नहीं रह सकते। एक अकेला हाथी हमेशा हाथियों के झुंड की तलाश करेगा। इस तरह आप दूसरे हाथियों को भी पकड़ सकते हैं। चाणक्य के इस उदाहरण की तुलना आप संपत्ति-सृजन की योग्यता के साथ भी कर सकते हैं। सबसे पहले आपको कुछ राशि कमाने की जरूरत होती है। फिर कमाई गई राशि स्वयं ही अधिक राशि का सृजन कर सकती है। वर्तमान युग के निवेशकों की आचार संहिता की जड़ हम कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में आसानी से ढूँढ सकते हैं। इस ग्रंथ की रचना भले ही 3,000 वर्ष पहले की गई थी, मगर यह आज भी प्रासंगिक बना हुआ है।

          चाणक्य नीति में चाणक्य ने आचरण की दक्षताओं के संबंध में भी प्रभावी सूत्र प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने लिखा है-” अगर आपको कोई कीमती उपहार दे रहा है तो आपको सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि वह आपसे बदले में उससे भी अधिक किसी कीमती वस्तु की अपेक्षा कर रहा है।”

चाणक्य ने चाणक्य नीति में लिखा है:-

“अनावश्यक रूप से निरर्थक वार्तालाप में समय बरबाद नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति का नुकसान हो सकता है। अपने क्रोध पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए, नहीं तो क्रोध आपको नियंत्रित करने लगेगा।”

         उन्होंने लिखा है-“कभी भी गुरु या बुजुर्गों से मिलने के लिए खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। अपने साथ कुछ फल या मिठाई लेकर जाना चाहिए। अपनी संतान का अच्छी तरह पालन-पोषण करना चाहिए, ताकि भविष्य में वे अपने माता-पिता की देखभाल कर सकें।”

            चाणक्य नीति में चाणक्य का कहना है कि गलत तरीके से कमाया गया धन नष्ट हो जाता है। व्यक्ति को हमेशा अपना विश्लेषण करना चाहिए और दैनंदिन व्यवहार पर नजर रखनी चाहिए।

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