“गुलज़ार शायरी: सुंदरता में छुपी कला”
प्रस्तावना
गुलज़ार, एक महान शायर, कवि और गीतकार हैं गुलज़ार शायरी ने लोगों के दिलों को छू लिया है। उनकी भाषा में एक अलग ही मिठास है जो हर किसी को मोहित कर देती है। गुलज़ार शायरी में जीवन की हर रंग-बिरंगी भावनाएं छिपी होती हैं, जो हमें विचार करने पर मजबूर कर देती हैं। उन्हें हिन्दी सिनेमा के इतिहास में सबसे महान गीतकारों में से एक माना जाता है। उन्होंने अपने करियर में 1000 से अधिक गीत लिखे हैं, जिनमें से कई क्लासिक बन गए हैं।
उनकी शायरी में शब्दों का खूबसूरत खेल होता है, जिससे आपकी दुनिया में एक नया चेहरा सामने आता है। उनके कलम से निकली शब्दों की ताकत यह है कि वे आपके दिल के धड़कनों तक पहुंच जाते हैं।
गुलज़ार की शायरी में प्रेम, इश्क, दर्द, खुशी, और जीवन की हर रूपरेखा में छुपा होता है। उनके शेरों में एक अलग सा मजा है, जो हमें सोचने पर मजबूर कर देता है।
गुलज़ार की शायरी को पढ़ना एक साहित्यिक अनुभव है, जिसमें रस, भावना, और साहित्यिकता का खूबसूरत मिश्रण होता है। उनकी कलम से निकले हर शेर में एक अद्वितीय सौंदर्य है जो हमें अपनी ज़िन्दगी को नए दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रेरित करता है।
गुलज़ार भारतीय सिनेमा के एक महान प्रतिभा हैं। उन्होंने अपने लेखन से भारतीय सिनेमा को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया है। उनके गीत और रचनाएँ भारतीय संस्कृति और साहित्य का एक अमूल्य हिस्सा हैं। गुलजार के कुछ मशहूर शायरी निम्नलिखित हैंः-
- मुझे मालूम था कि वो मेरा हो नहीं सकता, मगर देखो मुझे फिर भी मोहब्बत हो गई उससे
- प्यार जीत से नहीं किस्मत से मिलता है जनाब, वरना पूरी दुनिया का मालिक अपनी राधा के बिना नहीं रहता
- भूल गए हैं कुछ लोग हमें इस तरह, यकीन मानो यकीन नहीं होता
- झूठी शान के परिंदे ही ज्यादा कहते हैं, वरना बाज की उड़ान में कभी आवाज नहीं होती
- अगर किसी से मोहब्बत बेहिसाब हो जाए, तो समझ जाना व किस्मत में नहीं
- हवा गुजर गई पत्ते हिले भी नहीं, वो मेरे शहर में आए और हमसे मिले भी नहीं
- मेरे खामोशी से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, और शिकायत के दो लब्ज कहो तो चुप हो जाते हैं
- तुम्हें मोहब्बत कहा थी तुम्हे तो सिर्फ आदत थी, मोहब्बत होती तो हमारा पल भर का बिछड़ना भी तुम्हें सुकून से जीने नहीं देता
- कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़, किसी की आंख में हम को भी इंतज़ार दिखे…
- कोई ख़ामोश ज़ख्म लगती है, ज़िंदगी एक नज़्म लगती है..
- आप के बा’द हर घड़ी हमने, आप के साथ ही गुजारी है
- अपने साए से चौंक जाते हैं, उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा..
- तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं, सज़ाएं भेज दो हम ने ख़ताएं भेजी हैं
- राख को भी कुरेद कर देखो, अभी जलता हो कोई पल शायद…
- ज़ख्म कहते हैं दिल का गहना है, दर्द दिल का लिबास होता है..
- उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने, औरों में नुक्स निकालते-निकालते, इतना खुद को तराशा होता, तो फरिश्ते बन जाते।
- वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर, आदत इस की भी आदमी सी है।
- एक सुकून की तलाश में जाने कितनी बेचैनियां पाल लीं, और लोग कहते हैं कि हम बड़े हो गए हमने ज़िंदगी संभाल ली।
- टूट जाना चाहता हूं, बिखर जाना चाहता हूं, मैं फिर से निखर जाना चाहता हूं, मानता हूं मुश्किल है, लेकिन मैं गुलज़ार होना चाहता हूं।
- पूरे की ख्वाहिश में ये इंसान बहुत कुछ खोता है, भूल जाता है कि आधा चांद भी खूबसूरत होता है।
- दिल अब पहले सा मासूम नहीं रहा, पत्त्थर तो नहीं बना पर अब मोम भी नहीं रहा
- ना राज़ है “ज़िन्दगी”, ना नाराज़ है “ज़िन्दगी”, बस जो है, वो आज है ज़िन्दगी।
- समेट लो इन नाजुक पलों को ना जाने ये लम्हें हो ना हो, हो भी ये लम्हें क्या मालूम शामिल उन पलो में हम हो ना हो
- तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी, जब अपनों से उम्मीदें कम हो गईं।
- दर्द की भी अपनी एक अदा है, वो भी सहने वालों पर फ़िदा है
- ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा, वगर्ना ज़िंदगी ने तो रुला दिया होता
- मुँह मोड़ा और देखा कितनी दूर खड़े थे हम दोनों, आप लड़े थे हम से बस इक करवट की गुंजाइश पर
- चंद लम्हे जो लौट कर आए, रात के आख़िरी पहर आए
- एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे, दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का
- ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह, हो जाता है डाँवा-डोल कभी
- सदियों पे इख़्तियार नहीं था हमारा दोस्त, दो चार लम्हे बस में थे दो चार बस जिए
- सहर न आई कई बार नींद से जागे, थी रात रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले
- रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे, धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
- कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ, उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
- राख को भी कुरेद कर देखो, अभी जलता हो कोई पल शायद
- शाम से आँख में नमी सी है, आज फिर आप की कमी सी है
- वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर, आदत इस की भी आदमी सी है
- आदतन तुम ने कर दिए वादे, आदतन हम ने ए’तबार किया
- जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ, उस ने सदियों की जुदाई दी है
- हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
- हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में, रुक कर अपना ही इंतज़ार किया
- तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं, सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं
- ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में, एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
- जब भी ये दिल उदास होता है, जाने कौन आस-पास होता है
- दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई, जैसे एहसाँ उतारता है कोई
- देर से गूँजते हैं सन्नाटे, जैसे हम को पुकारता है कोई
- रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले, क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले
- ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा, वर्ना ज़िंदगी भर को रुला दिया होता
- चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं, दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें
- भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में, उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं
- आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं, मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
- यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता, कोई एहसास तो दरिया के आने का होता
- आइना देख कर तसल्ली हुई, हम को इस घर में जानता है कोई
- तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं, वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
- हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
- ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा, ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है
- काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी, तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी
- खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं, हवा चले न चले दिन पलटते रहते है
- वो उम्र कम कर रहा था मेरी, मैं साल अपने बढ़ा रहा था
- कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था, आज की दास्ताँ हमारी है
- काई सी जम गई है आँखों पर, सारा मंज़र हरा सा रहता है
- उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर, चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
- सहर न आई कई बार नींद से जागे, थी रात रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले
- कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया, जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की
- कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ, उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
- कोई अटका हुआ है पल शायद, वक़्त में पड़ गया है बल शायद
- आ रही है जो चाप क़दमों की, खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद