आदिल मंसूरी: प्रसिद्ध गुजराती कवि और लेखक

आदिल मंसूरी: प्रसिद्ध गुजराती कवि, लेखक और साहित्यकार

आदिल मंसूरी:जीवन परिचय

  • नाम : आदिल मंसूरी
  • जन्म: 1928, वडोदरा, गुजरात, भारत
  • मृत्यु: 2018, मुंबई, महाराष्ट्र, भारत
  • पत्नी: शांता मंसूरी
  • बच्चे: 4 बेटे और 2 बेटियां
  • राष्ट्रीयता: भारतीय
आदिल मंसूरी की टॉप शायरी
आदिल मंसूरी: प्रसिद्ध गुजराती कवि और लेखक

आदिल मंसूरी:उपलब्धियां

  • 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक
  • कविता, कहानी, नाटक, निबंध और बाल साहित्य सहित विभिन्न विधाओं में लिखा
  • कई पुरस्कारों से सम्मानित, जिनमें शामिल हैं:
    • रणजीतराम सुवर्ण चंद्रक
    • साहित्य अकादमी पुरस्कार
    • पद्मश्री

आदिल मंसूरी:प्रसिद्ध रचनाएं

  • कविता संग्रह:
    • “सतरंगी सपना”
    • “अक्षर अक्षर”
    • “आँख मंथन”
  • कहानी संग्रह:
    • “वात वरता”
    • “अंतिम पन्ना”
    • “तीन उम्र”
  • नाटक:
    • “केलि”
    • “शांतता! कोर्ट चालू आहे”
    • “वरदान”
  • बाल साहित्य:
    • “गुब्बारे वाला”
    • “जादू की दुनिया”
    • “चंदू का चाँद”

 को उनकी गहरी भावनाओं और समाज के प्रति उनकी सटीक टिप्पणियों के लिए जाना जाता है। उनकी रचनाओं ने गुजराती साहित्य को समृद्ध किया है।

आदिल मंसूरी के कुछ टॉप शायरी निम्नलिखित हैं:-

मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर

उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया

♥♥↔♥♥↔♥♥

किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को

काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के

♥♥↔♥♥↔♥♥

वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया

ये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से

♥♥↔♥♥↔♥♥

कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया

उदासी की मेहनत ठिकाने लगी

♥♥↔♥♥↔♥♥

जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर

वो तस्वीर बातें बनाने लगी

♥♥↔♥♥↔♥♥

जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख

इक रोज़ मेरी जान ये हरकत भी कर के देख

♥♥↔♥♥↔♥♥

कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ में

कब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार

♥♥↔♥♥↔♥♥

दरिया के किनारे पे मिरी लाश पड़ी थी

और पानी की तह में वो मुझे ढूँड रहा था

♥♥↔♥♥↔♥♥

मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ

ये जब्र है कि मैं ख़ुद अपने इख़्तियार में हूँ

♥♥↔♥♥↔♥♥

नींद भी जागती रही पूरे हुए न ख़्वाब भी

सुब्ह हुई ज़मीन पर रात ढली मज़ार में

♥♥↔♥♥↔♥♥

सोए तो दिल में एक जहाँ जागने लगा

जागे तो अपनी आँख में जाले थे ख़्वाब के

♥♥↔♥♥↔♥♥

कभी ख़ाक वालों की बातें भी सुन

कभी आसमानों से नीचे उतर

♥♥↔♥♥↔♥♥

अल्लाह जाने किस पे अकड़ता था रात दिन

कुछ भी नहीं था फिर भी बड़ा बद-ज़बान था

♥♥↔♥♥↔♥♥

कब से टहल रहे हैं गरेबान खोल कर

ख़ाली घटा को क्या करें बरसात भी तो हो

♥♥↔♥♥↔♥♥

हम्माम के आईने में शब डूब रही थी

सिगरेट से नए दिन का धुआँ फैल रहा था

♥♥↔♥♥↔♥♥

बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था

मैं हाथ में तलवार लिए झूम रहा था

♥♥↔♥♥↔♥♥

हर आँख में थी टूटते लम्हों की तिश्नगी

हर जिस्म पे था वक़्त का साया पड़ा हुआ

♥♥↔♥♥↔♥♥

न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को

उदास कर गए नींदों के राहगीरों को

♥♥↔♥♥↔♥♥

जाने किस को ढूँडने दाख़िल हुआ है जिस्म में

हड्डियों में रास्ता करता हुआ पीला बुख़ार

♥♥↔♥♥↔♥♥

लहू में उतरती रही चाँदनी

बदन रात का कितना ठंडा लगा

♥♥↔♥♥↔♥♥

फिर कोई वुसअत-ए-आफ़ाक़ पे साया डाले

फिर किसी आँख के नुक़्ते में उतारा जाऊँ

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top