आँखों पर शायरी या आँखों पर शेर – Aankhon per Shayari
आँखों पर शायरी : आँखें हमारे जिस्म का सिर्फ़ एक हिस्सा नहीं हैं, बल्कि हज़ारों दिलकश ख़्वाबों और शायराना ख़यालों का एक क़ीमती ख़ज़ाना भी हैं। शायरों ने महबूब की आँखों की तारीफ़ में जो कुछ लिखा है, वो हमारी सोच को एक नई दिशा देता है। शायरी की दुनिया में आँखों का ज़िक्र उस दिलचस्पी और गहराई का प्रतीक है, जो शायर अपने महबूब की आँखों में देखता है। यह विषय न केवल दिलचस्प है बल्कि भावनात्मक और संवेदनशीलता से भरपूर भी है। इस लेख में हम आँख शायरी की उस खूबसूरत दुनिया का दरवाज़ा खोलेंगे, जिसमें शायरों ने आँखों के ज़रिए अपनी भावनाओं और खयालों को बयां किया है। आँख शायरी ऐसे ख़ूबसूरत एक गुलदस्ता है जिसे आप ज़रूर पसंद फ़रमाँऐंगे।
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
आँखें मेरी भीगी हुई चेहरा तेरा उतरा हुआ
♥बशीर बद्र♥
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तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
♥मुनव्वर राना♥
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लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
♥जाँ निसार अख़्तर♥
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
♥जिगर मुरादाबादी♥
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तेरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
♥जिगर मुरादाबादी♥
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ख़ुदा बचाए तिरी मस्त मस्त आँखों से
फ़रिश्ता हो तो बहक जाए आदमी क्या है
♥ख़ुमार बाराबंकवी♥
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
♥बशीर बद्र♥
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जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
♥फ़िराक़ गोरखपुरी♥
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एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
♥मुनव्वर राना♥
♥♥♥♥⇔⇔♥♥♥आँखों पर शायरी♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
इक हसीं आँख के इशारे पर
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं
♥अब्दुल हमीद अदम♥
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आँख रहज़न नहीं तो फिर क्या है
लूट लेती है क़ाफ़िला दिल का
♥जलील मानिकपूरी♥
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आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है
जाँ निसार अख़्तर
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब
वो अलग बाँध के रक्खा है जो माल अच्छा है
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मैं डर रहा हूँ तुम्हारी नशीली आँखों से
कि लूट लें न किसी रोज़ कुछ पिला के मुझे
जलील मानिकपूरी
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कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम
आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं
जिगर मुरादाबादी
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
‘मीर’ उन नीम-बाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
मीर तक़ी मीर
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आँखों में जो बात हो गई है
इक शरह-ए-हयात हो गई है
फ़िराक़ गोरखपुरी
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तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
मुनव्वर राना
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
जिगर मुरादाबादी
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लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
जाँ निसार अख़्तर
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कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
बशीर बद्र
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में
आईने आँखों के धुँदले हो गए
नासिर काज़मी
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तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैं
मगर ये लोग इन आँखों के ख़्वाब माँगते हैं
अब्बास रिज़वी
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हसीं तेरी आँखें हसीं तेरे आँसू
यहीं डूब जाने को जी चाहता है
जिगर मुरादाबादी
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में
आईने आँखों के धुँदले हो गए
नासिर काज़मी
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लड़ने को दिल जो चाहे तो आँखें लड़ाइए
हो जंग भी अगर तो मज़ेदार जंग हो
लाला माधव राम जौहर
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आँख से आँख जब नहीं मिलती
दिल से दिल हम-कलाम होता है
असरार-उल-हक़ मजाज़
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उस की आँखों को ग़ौर से देखो
मंदिरों में चराग़ जलते हैं
बशीर बद्र
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पैमाना कहे है कोई मय-ख़ाना कहे है
दुनिया तिरी आँखों को भी क्या क्या न कहे है
अज्ञात
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ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
आदिल मंसूरी
♥♥♥♥⇔⇔♥♥♥आँखों पर शायरी♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
उन झील सी गहरी आँखों में
इक लहर सी हर दम रहती है
रसा चुग़ताई
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लोग नज़रों को भी पढ़ लेते हैं
अपनी आँखों को झुकाए रखना
अख़्तर होशियारपुरी
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‘मीर’ उन नीम-बाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
मीर तक़ी मीर
♥♥♥♥⇔⇔♥♥♥आँखों पर शायरी♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं
अब्दुल हमीद अदम
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अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता
भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें
मोहसिन नक़वी
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आँख से आँख मिलाना तो सुख़न मत करना
टोक देने से कहानी का मज़ा जाता है
मोहसिन असरार
♥♥♥♥⇔⇔♥♥♥आँखों पर शायरी♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है
दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है
अख़्तर शीरानी
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आ जाए न दिल आप का भी और किसी पर
देखो मिरी जाँ आँख लड़ाना नहीं अच्छा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
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आँखें ख़ुदा ने दी हैं तो देखेंगे हुस्न-ए-यार
कब तक नक़ाब रुख़ से उठाई न जाएगी
जलील मानिकपूरी
♥♥♥♥⇔⇔♥♥♥आँखों पर शायरी♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
आँखें न जीने देंगी तिरी बे-वफ़ा मुझे
क्यूँ खिड़कियों से झाँक रही है क़ज़ा मुझे
इमदाद अली बहर
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मैं डर रहा हूँ तुम्हारी नशीली आँखों से
कि लूट लें न किसी रोज़ कुछ पिला के मुझे
जलील मानिकपूरी
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रात को सोना न सोना सब बराबर हो गया
तुम न आए ख़्वाब में आँखों में ख़्वाब आया तो क्या
जलील मानिकपूरी
♥♥♥♥⇔⇔♥♥♥आँखों पर शायरी♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
जान से हो गए बदन ख़ाली
जिस तरफ़ तू ने आँख भर देखा
ख़्वाजा मीर दर्द
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न वो सूरत दिखाते हैं न मिलते हैं गले आ कर
न आँखें शाद होतीं हैं न दिल मसरूर होता है
लाला माधव राम जौहर
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हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है
अख़्तर अंसारी
♥♥♥♥⇔⇔♥♥♥आँखों पर शायरी♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
बुज़-दिली होगी चराग़ों को दिखाना आँखें
अब्र छट जाए तो सूरज से मिलाना आँखें
शकील बदायूनी
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कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम
आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं
जिगर मुरादाबादी
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मैं ने चाहा था कि अश्कों का तमाशा देखूँ
और आँखों का ख़ज़ाना था कि ख़ाली निकला
साक़ी फ़ारुक़ी
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तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैं
मगर ये लोग इन आँखों के ख़्वाब माँगते हैं
अब्बास रिज़वी
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आँखें साक़ी की जब से देखी हैं
हम से दो घूँट पी नहीं जाती
जलील मानिकपूरी
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शाम से उन के तसव्वुर का नशा था इतना
नींद आई है तो आँखों ने बुरा माना है
अज्ञात
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं
बशीर बद्र
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आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई
शहरयार
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हम मोहब्बत का सबक़ भूल गए
तेरी आँखों ने पढ़ाया क्या है
जमील मज़हरी
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कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है ‘सौदा’
साग़र को मिरे हाथ से लीजो कि चला मैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
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दिलों का ज़िक्र ही क्या है मिलें मिलें न मिलें
नज़र मिलाओ नज़र से नज़र की बात करो
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
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देखी हैं बड़े ग़ौर से मैं ने वो निगाहें
आँखों में मुरव्वत का कहीं नाम नहीं है
जलील मानिकपूरी
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किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे
बशीर बद्र
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आँखों में जो बात हो गई है
इक शरह-ए-हयात हो गई है
फ़िराक़ गोरखपुरी
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कहीं न उन की नज़र से नज़र किसी की लड़े
वो इस लिहाज़ से आँखें झुकाए बैठे हैं
नूह नारवी
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अभी वो आँख भी सोई नहीं है
अभी वो ख़्वाब भी जागा हुआ है
नसीर अहमद नासिर
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यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
बज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दिया
फ़ानी बदायुनी
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मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की
बिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे
बशीर बद्र
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अधर उधर मिरी आँखें तुझे पुकारती हैं
मिरी निगाह नहीं है ज़बान है गोया
बिस्मिल सईदी
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उस की आँखें हैं कि इक डूबने वाला इंसाँ
दूसरे डूबने वाले को पुकारे जैसे
इरफ़ान सिद्दीक़ी
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बिछी थीं हर तरफ़ आँखें ही आँखें
कोई आँसू गिरा था याद होगा
बशीर बद्र
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ढूँडती हैं जिसे मिरी आँखें
वो तमाशा नज़र नहीं आता
अमजद हैदराबादी
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आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
गुलज़ार
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रह गए लाखों कलेजा थाम कर
आँख जिस जानिब तुम्हारी उठ गई
दाग़ देहलवी
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लोग करते हैं ख़्वाब की बातें
हम ने देखा है ख़्वाब आँखों से
साबिर दत्त
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होता है राज़-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत इन्हीं से फ़ाश
आँखें ज़बाँ नहीं हैं मगर बे-ज़बाँ नहीं
असग़र गोंडवी
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हर एक आँख में होती है मुंतज़िर कोई आँख
हर एक दिल में कहीं कुछ जगह निकलती है
अबरार अहमद
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कभी ज़ियादा कभी कम रहा है आँखों में
लहू का सिलसिला पैहम रहा है आँखों में
शाज़ तमकनत
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आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर
ये क़ाफ़िला भी नक़्ल-ए-मकानी में खो गया
अब्बास ताबिश
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कोई समझाए कि क्या रंग है मयख़ाने का
आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का
इक़बाल सफ़ी पूरी
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राह-ए-दिल को रौंद कर आगे निकल जाएँगे लोग
आँख में उठता ग़ुबार-ए-क़ाफ़िला रह जाएगा
इम्तियाज़ ख़ान
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निकलने ही नहीं देती हैं अश्कों को मिरी आँखें
कि ये बच्चे हमेशा माँ की निगरानी में रहते हैं
मुनव्वर राना
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वो पहले सिर्फ़ मिरी आँख में समाया था
फिर एक रोज़ रगों तक उतर गया मुझ में
रहमान फ़ारिस
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उन मद-भरी आँखों की तारीफ़ हो क्या ज़ाहिद
देखो तो हैं दो साग़र समझो तो हैं मय-ख़ाना
दुआ डबाईवी
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अब अपने चेहरे पर दो पत्थर से सजाए फिरता हूँ
आँसू ले कर बेच दिया है आँखों की बीनाई को
शहज़ाद अहमद
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आँखें बता रही हैं कि जागे हो रात को
इन साग़रों में बू-ए-शराब-ए-विसाल है
जलील मानिकपूरी
♥♥♥♥⇔⇔♥♥♥आँखों पर शायरी♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
तुम्हारी आँख में कैफ़िय्यत-ए-ख़ुमार तो है
शराब का न सही नींद का असर ही सही
शहज़ाद अहमद
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आँखें खोलो ख़्वाब समेटो जागो भी
‘अल्वी’ प्यारे देखो साला दिन निकला
मोहम्मद अल्वी
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टूटती रहती है कच्चे धागे सी नींद
आँखों को ठंडक ख़्वाबों को गिरानी दे
ज़ेब ग़ौरी
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उन आँखों में डाल कर जब आँखें उस रात
मैं डूबा तो मिल गए डूबे हुए जहाज़
अमीक़ हनफ़ी
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असर न पूछिए साक़ी की मस्त आँखों का
ये देखिए कि कोई होश्यार बाक़ी है
बेताब अज़ीमाबादी
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कब उन आँखों का सामना न हुआ
तीर जिन का कभी ख़ता न हुआ
मुबारक अज़ीमाबादी
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
आँखों को देखते ही बोले
बिन पिए कोई मदहोश आया
मीना कुमारी नाज़
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बहें न आँख से आँसू तो नग़्मगी बे-सूद
खिलें न फूल तो रंगीनी-ए-फ़ुग़ाँ क्या है
अख़्तर सईद ख़ान
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बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की
वो इक निगह कि ब-ज़ाहिर निगाह से कम है
मिर्ज़ा ग़ालिब
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मज़ा लेंगे हम देख कर तेरी आँखें
उन्हें ख़ूब तू नामा-बर देख लेना
जलील मानिकपूरी
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ये ख़द्द-ओ-ख़ाल ये गेसू ये सूरत-ए-ज़ेबा
सभी का हुस्न है अपनी जगह मगर आँखें
ख़ान रिज़वान
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जब डूब के मरना है तो क्या सोच रहे हो
इन झील सी आँखों में उतर क्यूँ नहीं जाते
शाहिद कमाल
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मुझे तावीज़ लिख दो ख़ून-ए-आहू से कि ऐ स्यानो
तग़ाफ़ुल टोटका है और जादू है नज़र उस की
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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हैं तसव्वुर में उस के आँखें बंद
लोग जानें हैं ख़्वाब करता हूँ
मीर मोहम्मदी बेदार
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नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
फ़ुसूँ है सेहर है जादू है क्या है आँखों में
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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‘अज़्म’ इस शहर में अब ऐसी कोई आँख नहीं
गिरने वाले को यहाँ जिस ने सँभलते देखा
अज़्म बहज़ाद
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हैं मिरी राह का पत्थर मिरी आँखों का हिजाब
ज़ख़्म बाहर के जो अंदर नहीं जाने देते
ख़ुर्शीद रिज़वी
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किसी को क़िस्सा-ए-पाकी-ए-चश्म याद नहीं
ये आँखें कौन सी बरसात में नहाई थीं
मुसव्विर सब्ज़वारी
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भर लाए हैं हम आँख में रखने को मुक़ाबिल
इक ख़्वाब-ए-तमन्ना तिरी ग़फ़लत के बराबर
अबरार अहमद
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आँखों में उस की मैं ने आख़िर मलाल देखा
किन किन बुलंदियों पर अपना ज़वाल देखा
मोहम्मद आज़म
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
तरस रही थीं ये आँखें किसी की सूरत को
सो हम भी दश्त में आब-ए-रवाँ उठा लाए
सालिम सलीम
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जो आए हश्र में वो सब को मारते आए
जिधर निगाह फिरी चोट पर लगाई चोट
अहमद हुसैन माइल
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आया है मिरे दिल का ग़ुबार आँसुओं के साथ
लो अब तो हुई मालिक-ए-ख़ुश्की-ओ-तरी आँख
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
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पलकों पे ग़म-ए-हिज्र के सब दीप जलाए
नींदों के शबिस्तान में भारी मिरी आँखें
इस्मा हादिया
♥♥♥♥⇔⇔♥♥आँखों पर शायरी♥♥♥ ⇔⇔♥♥♥♥♥♥
वो जिस मुंडेर पे छोड़ आया अपनी आँखें मैं
चराग़ होता तो लौ भूल कर चला जाता
जमाल एहसानी
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उस की चश्म-ए-नीम-वा से पूछियो
वो तिरे मिज़्गाँ-शुमाराँ क्या हुए
जौन एलिया
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अपनी आँखों की बद-नसीबी हाए
इक न इक रोज़ हादिसा देखा
सदा अम्बालवी
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सारांश
आँखों पर शायरी का सारांश यह है कि इसमें आँखों की खूबसूरती, भावनाएँ, और उनके ज़रिए व्यक्त होने वाले प्यार का बखूबी वर्णन किया जाता है। शायर अक्सर आँखों को दिल के भावों का आईना मानते हैं, जिसमें प्रेम, दर्द, और आकर्षण जैसे विभिन्न भाव झलकते हैं। आँखें बिना बोले ही दिल की बात कह देती हैं, और यही वजह है कि शायरी में आँखों का ज़िक्र बहुत गहराई से किया जाता है।