अंधविश्वास: एक व्यक्तिगत खोज
अंधविश्वास का अर्थ
अंधविश्वास वह धारणा है जिसमें किसी व्यक्ति विश्वास करता है, बिना किसी वास्तविक प्रमाण या तर्क के। यह धारणा व्यक्ति के मन में इतनी गहराई तक प्रभाव डालती है कि वह उसे अपने जीवन में महत्वपूर्ण मान लेता है।
अंधविश्वास की उत्पत्ति
अंधविश्वास आमतौर पर परंपरागत मान्यताओं, धार्मिक अभिप्रायों, और सामाजिक अनुभवों से उत्पन्न होता है। यह व्यक्ति के बचपन के अनुभवों और परिवार की विशेषताओं से जुड़ा होता है। अंधविश्वास का उत्पत्ति विभिन्न कारणों से हो सकता है। कई बार यह समाज में प्राचीन परंपराओं और मान्यताओं का परिणाम होता है। लोगों को अपने पूर्वजों से इन अंधविश्वासों का विरासत मिलता है और वे उन्हें अपने जीवन में अपनाते हैं। कभी-कभी यह भी होता है कि लोगों के अनुभवों या वास्तविकता के अभाव में उन्हें अंधविश्वास में विश्वास हो जाता है। इसके अलावा, कुछ लोग अंधविश्वासों के पीछे भय और अनिश्चितता के कारण भी हो सकते हैं। इन्हें लगता है कि अंधविश्वासों को मानने से उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा।
अंधविश्वास के प्रकार
अंधविश्वास कई रूपों में पाया जाता है, जैसे अशुभ मान्यताओं, धार्मिक मिथक, और सुपरस्टिशन। यह विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक परियोजनाओं के साथ जुड़ा होता है।
अंधविश्वास न केवल अशिक्षित एवं निम्न आय वर्ग के लोगों में देखने को मिलता है, बल्कि यह काफी शिक्षित, विद्वान, बौद्धिक, उच्च आय वर्ग एवं विकसित देशों के लोगों में भी कम या ज्यादा देखने को मिलता है। यह आमतौर पर पीढ़ी दर पीढ़ी देखने को मिलता है। अंधविश्वास समाज, देश, क्षेत्र, जाति एवं धर्म के हिसाब से अलग-अलग तरह के होते हैं। विभिन्न प्रकार के अंधविश्वास आमतौर पर समाज में देखने को मिलते हैं, जैसे आंख का फड़कना, घर से बाहर किसी काम से जाते समय किसी व्यक्ति द्वारा छींक देना, बिल्ली का रास्ता काट जाना, 13 तारीख को पड़ने वाला शुक्रवार या 13 नवंबर को अशुभ मानना, हथेली पर खुजली होना, काली बिल्ली में भूत-प्रेत का वास होना, परीक्षा देने जाने से पहले सफेद वस्तु जैसे दही आदि का सेवन करना, सीधे हाथ पर नीलकंठ नामक चिड़िया का दिखाई देना, सीढ़ी के नीचे से निकलना, मुंह देखने वाले शीशे का टूटना, घोड़े की नाल का मिलना, घर के अंदर छतरी खोलना, लकड़ी पर दो बार खटखटाना, कंधे के पीछे नमक फेंकना, मासिक धर्म के दौरान महिला को अपवित्र मानकर उसके मंदिर में प्रवेश को वर्जित करना, श्राद्ध के दिनों में नया काम शुरू न करना या नए कपड़े न सिलवाना आदि।
अंधविश्वास सच्चाई और वास्तविकता से बहुत दूर
अंधविश्वास सच्चाई और वास्तविकता से बहुत दूर होते हैं। अंधविश्वास में व्यक्ति आलौकिक शक्तियों में विश्वास करता है। शक्तियों के अस्तित्व में विश्वास रखता है, जो कि प्रकृति के नियमों की पुष्टि नहीं करता है और न ही ब्रह्मांड की वैज्ञानिक समझ रखता है। अंधविश्वास व्यापक रूप से फैला हुआ है। आलौकिक प्रभाव में तर्कहीन विश्वास होता है। आंख के फड़कने के बारे में लोगों में यह अंधविश्वास है कि पुरुष की सीधी आंख एवं महिला की उल्टी आंख फड़कना शुभ होता है। वहीं इसका उल्टा होना अशुभ माना जाता है।
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, इसे मसल फ्लीकरिंग कहते हैं, इसका कोई कारण अभी तक पता नहीं है एवं न ही इसका कोई उपचार है। आंख का फड़कना स्वतः ही बंद हो जाता है। घर से बाहर किसी कार्य के लिए जाते समय, किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा छींक देना भी एक अंधविश्वास है। ऐसा होने पर व्यक्ति वहीं कुछ समय के लिए रुक जाता है एवं घर पर पानी पीकर या कुछ छोटा, मोटा खाकर ही दोबारा निकलता है। बिल्ली का रास्ता काट जाना भी अशुभ माना जाता है। देखा गया है कि अगर बिल्ली किसी रास्ते को पार कर जाती है, तब दोनों तरफ के लोग रुककर खड़े हो जाते हैं एवं तब तक खड़े रहते हैं, जब तक कि कोई व्यक्ति या कोई वाहन उस रास्ते को पार न कर जाए। इस कारण कई बार सड़कों पर जाम तक लग जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि बिल्ली, शेर के परिवार से संबंधित होती है। शेर, चीता एवं इस परिवार के जानवर जब कोई सड़क या रास्ता पार करते हैं, तब रास्ता पार करने के बाद रुककर, पीछे मुड़कर अपने शिकार की तरफ देखते हैं। इसी कारण पुराने समय में लोग जब तक शेर चला नहीं जाता था, तब तक उस रास्ते पर आगे नहीं बढ़ते थे। कारण तो ये था, लेकिन अब यह अंधविश्वास बन गया है।
अंधविश्वास : तेरह नंबर या तेरह तारीख को अशुभ
तेरह नंबर या तेरह तारीख को अशुभ माना जाता है एवं अगर तेरह तारीख, शुक्रवार के दिन पड़ती है, तो इसे अत्यंत अशुभ माना जाता है। देखा गया है कि होटल्स में तेरह नंबर का कमरा या तेरहवां तल भी नहीं होता है, वहां पर बारह के बाद सीधे चौदहवां नंबर होता है। यह भी एक प्रकार का अंधविश्वास है। हाथ की हथेली पर खुजली होना भी अंधविश्वास से जुड़ा है, जिसके अनुसार पुरुष की सीधी हथेली पर एवं महिला की उल्टी हथेली पर खुजली होने से धन की प्राप्ति होती है, जबकि इसका उल्टा होने पर आर्थिक हानि संभव है। हमारे समाज में ऐसा माना जाता है कि काली बिल्ली में भूत का वास होता है। इसी कारण से लोग काली बिल्ली को अपने घर में नहीं घुसने देते। वहीं समाज के कुछ हिस्सों में काली बिल्ली को भाग्यशाली भी माना जाता है। इस कारण से लोग काली बिल्ली को घरों में पालते हैं। लेकिन काली बिल्ली में न भूत का वास होता है और न ही काली बिल्ली अच्छे भाग्य का कारण होती है। यह मात्र एक अंधविश्वास एवं कपोल कल्पित घटनाओं पर आधारित है।
अंधविश्वास : बच्चों के परीक्षा देने जाने से पहले माता-पिता सफेद वस्तु जैसे दही आदि खिलाना
बच्चों के परीक्षा देने जाने से पहले माता-पिता सफेद वस्तु जैसे दही आदि खिलाकर भेजते हैं। यह इस अंधविश्वास से जुड़ा होता है कि सफेद वस्तु खाकर जाने से परीक्षा बहुत अच्छी होती है एवं नंबर बहुत अच्छे आते हैं। अगर आप कहीं जा रहे हैं एवं रास्ते में नीलकंठ नामक चिड़िया सीधे हाथ की तरफ दिखाई पड़ती है, तो यह अत्यंत शुभ का द्योतक है। इसके पीछे यह कहानी यह जुड़ी हुई है कि हम जो भी बात नीलकंठ नामक चिड़िया से कहेंगे, वह बात सीधे भगवान शिव तक पहुंचा देगी एवं हमारी मनोकामना पूरी होगी। खड़ी हुई सीढ़ी के नीचे से निकलने को लोग दुर्भाग्य से जोड़ते हैं, जबकि यह केवल एक अंधविश्वास मात्र ही है। मुंह देखने वाले शीशे का टूटना भी अशुभ माना जाता है एवं इसे घर में रखना भी अशुभ होता है। ऐसा अंधविश्वास हमारे समाज में काफी प्रचलित है।
अंधविश्वास : घोड़े की नाल का मिलना शुभ
घोड़े की नाल (घोड़े के पैरों के नीचे लगे लोहे) का मिलना शुभ माना जाता है एवं लोग इस नाल से गोल छल्ला बनवाकर सीधे हाथ के बीच की उंगली में पहनते हैं। एक अंधविश्वास के अनुसार, घर के अंदर छाते को खोलना अशुभ माना जाता है। लकड़ी पर चाहे वह लकड़ी का दरवाजा हो या कोई अन्य वस्तु, दो बार खटखटाना भी शुभ नहीं माना जाता है। यह भी एक प्रकार का अंधविश्वास ही है। जब कोई व्यक्ति अच्छे से तैयार होता है एवं किसी को वह बहुत अच्छा, सुंदर लगता है, तब वह लकड़ी की किसी वस्तु को छूकर टचवुड बोलता है, ताकि उस व्यक्ति को नजर न लगे, जबकि इसमें अंधविश्वास के अलावा कोई सच्चाई नहीं होती है। हमारे समाज में दुर्भाग्य को दूर करने के लिए व्यक्ति के कंधे के पीछे लोग नमक भी फेंकते हैं, जिससे कि उस व्यक्ति का भाग्य जागृत हो जाए, यह कार्य भी अंधविश्वास की श्रेणी में आता है। जब कोई व्यक्ति छींकता है, तब हम कहते हैं कि भगवान भला करे या छत्रपति जय नंदी माई। हमारे पूर्वज बताते हैं कि ऐसा इसीलिए कहा जाता है कि कहीं छींकने के समय पर शैतान हमारी आत्मा को न ले जाए। यह भी एक प्रकार का अंधविश्वास ही है।
अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई में शिक्षा एवं जागरूकता का महत्वपूर्ण भूमिका है। लोगों को इस तथ्य का आदर करना चाहिए कि वे अपने अंधविश्वासों को तथ्यों और तर्क से जाँचें। सही जानकारी और विद्या के प्राप्त होने से अंधविश्वासों का समाप्त होना संभव है। इसके लिए समाज में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है, ताकि लोग अंधविश्वासों के प्रति जागरूक बनें और सही निर्णय लें।